शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

धाकड़ समाज का परिचय

मथुरा नरेश महाराज सुरसेन के सुपुत्र महाराज वसुदेव हुए l

महाराज वसुदेव की पत्नी रोहिणी ने बलराम एवम् देवकी ने

श्रीकृष्ण को जन्म दिया l शेषनाग के अवतार श्रीलक्ष्मण के

अवतार श्रीबलराम हे l आपने हल को कृषि यंत्र रूप मे व युद्ध

मे शस्त्र के रूप मे उपयोग किया l इसीलिए आप हलधर कहलाए l

अपने कृषि कार्य को प्रमुखता दी व इसके विकास मे महत्वपूर्ण योगदान

दिया l हमारा समाज भी खेतीहर समाज हे l भगवान हलधर धारणीधर

श्री बलराम हमारे पूज्‍यनीय हे l धारणीधर भगवान का प्रसिद्ध मंदिर

मान्डूकला (राजस्थान) मे सुंदर तालाब के किनारे शोभमान हे l

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संक्षिप्त परिचय

 

धाकड पुराण के अनुसार ''धाकड़ क्षत्रिय'' समूह का उद्भव महाभारत काल में हुआ। ''धाकड क्षत्रिय'' समूह लगभग बारहवीं शताब्दी के बाद एक जाति के रूप में परिणित हुआ। ''धाकड '' ऐतिहासिक क्षत्रिय वंशजों में से बने हुयेएक समूह का नाम है, जिसका मूल पेशा कृषि है। कालान्तर में यह जाति रूप में परिवर्तित हो गया। बहुत समय पहले की धाकड क्षत्रियों के विषय में यह कहावत सुनी जाती है- ''धाकड लाकड सायर सा, नर बारे नल वंश'' अर्थात् नर बर के राजा नल के वंशज धाकड सायर की लकडी के समान मजबूत थे। ''धाकड'' क्षत्रियों के विषय में एक अंग्रेज सेना नायक जेम्स मेड्रिड ने कहा था कि -''धाकड क्षत्री'' अफगानी घोड ों की तरह मजबूत, कुशल तथा चतुर लडाकू हैं। आजकल ''धाकड'' शब्द का प्रयोग तेजतर्रार, वीरता और मजबूती का भाव प्रकट करने के लिए किया जाता है। जिससे जाहिर होता है कि किसी समय में धाकड क्षत्रियों का वैभव ऊॅचा रहा है। कुछ धाकड क्षत्रिय वंशज पृथ्वीराज तृतीय की राजसभा में धवल, सामन्त रहे थे जिनकी वीरता एवं वैभव का अनुभव ''पृथ्वीराजरासो'' ग्रन्थ की इस पंक्ति के द्वारा होता है- ''धब्बरे धाबर धक्करेै रण बंकरै।'' ''धाकड क्षत्रिय'' देश में नागर, मालव, किराड तीन उपसमूहों के रूप में प्रायः राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में पाये जाते हैं। ''धाकड'' श्री धरणीधर भगवान (बलदाऊ) जिन्हैं हलधर कहा जाता है, को अपना ईष्टदेव मानते हैं। श्री धरणीधर भगवान का नागर चाल क्षेत्र के मांडकला गांव में तथा जिला झालावाड के सुगर गांव में भव्य मन्दिर है। ऐतिहासिक वर्णनों एवं प्रमाणों के अनुसार बारहवीं शताब्दी से पूर्व सभी क्षत्रिय वंश शाखाओं के वंशजों को ''क्षत्रिय'' शब्द का ही प्रयोग होता था। लगभग बारहवीं-तेरहवीं शताबदी से राजवंशी क्षत्रियों को राजपूत तथा कृषिकर्मी क्षत्रियों को धाकड़ कहा जाने लगा। अतः धाकड सभी क्षत्रिय वंश शाखाओं में से बने हुए एक समूह का नाम है, जिनका मूल पेशा कृषि था। देशभर में धाकड जाति के लोग अधिकतर कृषि प्रधान ही मिलते हैं। पहले किसी की नौकरी करना धाकड जाति में घृणास्पद माना जाता था। ''उतम खेती , मध्यम व्यापार, कनिष्ठ चाकरी'' के कथनानुसार अब भी धाकड जाति में कर्मठ किसान पाये जाते हैं। वर्तमान में धाकड क्षत्रिय तीन उपसमूहों में विभकत हैं- नागर, मालव और किराड। इन उपसमूहों में परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध एवं रोटी बेटी व्यवहार होता है। धाकड जाति में पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं है। धाकड जाति प्रायः राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में पाई जाती है।

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7 टिप्‍पणियां:

  1. धाकड़' ठाकुर जाति की उपजाति है या क्षत्रिय वंशजों में से बने हुए एक समूह का नाम है। राजपुताना प्रांत बनने से पूर्व 'धरकड़ ठाकुर' एवं ''राजपूत ठाकुर'' के समूह थे

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  2. धाकड समूह का उदभव महाभारत काल में हुआ वि०सं० ११४० में अजमेर के राजा बीसलदेव धाकड (धरखड)समूह के अधिनायक बने। कालान्तर में यह समूह धाकड जाति के रूप में परिणित हो गया

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